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Bhagavad Gita Part 104: योग के अभ्यास के लिए क्या क्या सावधानी रखनी पड़ती है ? समझिएBhagavad Gita Part 104: योग के अभ्यास के लिए क्या क्या सावधानी रखनी पड़ती है ? समझिए Bhagavad Gita Part 104: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, योग की अवस्था प्राप्त करने के इच्छुक साधकों को चाहिए कि वे एकान्त स्थान में रहें।0 Comments 0 Shares 804 Views 0 Reviews
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Bhagavad Gita Part 106: योग में सफल होने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? श्री कृष्ण ने दिया ये उत्तरBhagavad Gita Part 106: योग में सफल होने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? श्री कृष्ण ने दिया ये उत्तर Bhagavad Gita Part 106: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, एक योगी का परम लक्ष्य क्या होना चाहिए।0 Comments 0 Shares 837 Views 0 Reviews
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Bhagavad Gita Part 84: मनुष्य अपने मन से अज्ञान और संदेह को कैसे दूर करेगा? श्री कृष्ण ने दिया ये जवाब!Bhagavad Gita Part 84: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, जिन अज्ञानी लोगों में न तो श्रद्धा और न ही ज्ञान है और जो संदेहास्पद प्रकृति के होते हैं उनका पतन होता है। विस्तार Bhagavad Gita Part 84: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, जिन अज्ञानी लोगों में न तो श्रद्धा और न ही ज्ञान है और जो संदेहास्पद प्रकृति के होते हैं उनका पतन होता है। योगसंन्यस्तकर्माणं...0 Comments 0 Shares 814 Views 0 Reviews
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Bhagavad Gita Part 86: कर्मयोगी और कर्मसंन्यासी, क्या ये दोनों अलग है? श्री कृष्ण ने दिया ये सुन्दर जवाबभगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि कर्मयोगी को कर्म संन्यासी से उत्तम माना गया है। आगे कृष्ण बोले, विस्तार भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि कर्मयोगी को कर्म संन्यासी से उत्तम माना गया है। आगे कृष्ण बोले, ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति। निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते (...0 Comments 0 Shares 759 Views 0 Reviews
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Bhagavad Gita Part 87: क्या व्यक्ति अपने कर्म को पूरी तरह त्याग सकता है? किस अवस्था म व्यक्ति ऐसा कर सकता है?भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कर्मयोग और कर्म संन्यास को भिन्न नहीं समझना चाहिए। दरअसल ये दोनों मार्ग आपको श्री भगवान के करीब ले जाने की ताकत रखते है। विस्तार भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कर्मयोग और कर्म संन्यास को भिन्न नहीं समझना चाहिए। दरअसल ये दोनों मार्ग आपको श्री भगवान के करीब ले जाने की ताकत रखते है। यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते, एकं सायं च...0 Comments 0 Shares 837 Views 0 Reviews
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Bhagavad Gita Part 88: विशुद्ध बुद्धि युक्त कर्मयोगी के क्या लक्षण है? वो अपने कर्म के बारे में क्या विचार करतभगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, व्यक्ति को सीधे ही कर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। उसे धीरे -2 अभ्यास के द्वारा सांसारिक मोह, क्रोध और अपनी कामनाओं को नष्ट करना चाहिए। विस्तार भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, व्यक्ति को सीधे ही कर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। उसे धीरे -2 अभ्यास के द्वारा सांसारिक मोह, क्रोध और अपनी कामनाओं को नष्ट करना चाहिए। योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा...0 Comments 0 Shares 827 Views 0 Reviews
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Bhagavad Gita Part 89: मनुष्य भक्ति के मार्ग को कैसे प्राप्त कर सकता है? श्री कृष्ण ने ये कमल के पुष्प से समझाभगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कर्मयोगी किसी भी अवस्था में खुद को कर्म का जनक नहीं मानता है। उसके पास गुरु कृपा से दिव्य ज्ञान होता है। विस्तार भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कर्मयोगी किसी भी अवस्था में खुद को कर्म का जनक नहीं मानता है। उसके पास गुरु कृपा से दिव्य ज्ञान होता है जिसके कारण वो समझता है कि सिर्फ भौतिक इन्द्रियाँ ही संसार के भोग के प्रति क्रियाशील है और वो...0 Comments 0 Shares 795 Views 0 Reviews
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Bhagavad Gita Part 91: आपके कर्मों के फल का सृजन कौन करता है? क्या ईश्वर की है कोई भूमिकाभगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, जो देहधारी जीव आत्मनियंत्रित एवं निरासक्त होते हैं, नौ द्वार वाले भौतिक शरीर में भी वे सुखपूर्वक रहते हैं। विस्तार भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, जो देहधारी जीव आत्मनियंत्रित एवं निरासक्त होते हैं, नौ द्वार वाले भौतिक शरीर में भी वे सुखपूर्वक रहते हैं। न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः , न कमर्फलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते (अध्याय 5...0 Comments 0 Shares 873 Views 0 Reviews
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