Bhagavad Gita Part 89: मनुष्य भक्ति के मार्ग को कैसे प्राप्त कर सकता है? श्री कृष्ण ने ये कमल के पुष्प से समझा
भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कर्मयोगी किसी भी अवस्था में खुद को कर्म का जनक नहीं मानता है। उसके पास गुरु कृपा से दिव्य ज्ञान होता है। विस्तार भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कर्मयोगी किसी भी अवस्था में खुद को कर्म का जनक नहीं मानता है। उसके पास गुरु कृपा से दिव्य ज्ञान होता है जिसके कारण वो समझता है कि सिर्फ भौतिक इन्द्रियाँ ही संसार के भोग के प्रति क्रियाशील है और वो...
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