Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि माता पार्वती और शिव जी का विवाह संपन्न हुआ और पार्वती की विदाई का समय आ गया। उस समय मेना के कहने पर एक ब्राह्मण स्त्री ने पार्वती को पत्नी धर्म समझाया। 

शिव पुराण

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Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि माता पार्वती और शिव जी का विवाह संपन्न हुआ और पार्वती की विदाई का समय आ गया। उस समय मेना के कहने पर एक ब्राह्मण स्त्री ने पार्वती को पत्नी धर्म समझाया। वो गौरी से बोली, पतिव्रता नारियाँ उत्तमा आदि भेद से चार प्रकार की बतायी गयी हैं, जो अपना स्मरण करने वाले पुरुषों का सारा पाप हर लेती हैं। उत्तमा, मध्यमा, निकृष्टा और अतिनिकृष्टा- ये पतिव्रता के चार भेद हैं। अब मैं इनके लक्षण बताती हूँ। ध्यान देकर सुनो।जिसका मन सदा स्वप्न में भी अपने पति को ही देखता है, दूसरे किसी पर पुरुष को नहीं, वह स्त्री उत्तमा या उत्तम श्रेणी की पतिव्रता कही गयी है। जो दूसरे पुरुष को उत्तम बुद्धि सेपिता, भाई एवं पुत्र के समान देखती है, उसे मध्यम श्रेणी की पतिव्रता कहा गया है। जो मन से अपने धर्म का विचार करके व्यभिचार नहीं करती, सदाचार में ही स्थित रहती है, उसे निकृष्टा अथवा निम्न श्रेणी की पतिव्रता कहा गया है।

 

जो पति के भय से तथा कुल में कलंक लगने के डर से व्यभिचार से बचने का प्रयत्न करती है, उसे पूर्वकाल के विद्वानों ने अति निकृष्टा अथवा निम्नतम कोटि की पतिव्रता बताया है। ये चारों प्रकार की पतिव्रताएँ समस्त लोकों का पाप नाश करनेवाली और उन्हें पवित्र बनाने वाली हैं। अत्रि की स्त्री अनसूया ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव-इन तीनों देवताओं की प्रार्थना से पातिव्रत्य के प्रभाव का उपभोग करके वाराह के शाप से मरे हुए एक ब्राह्मण को जीवित कर दिया था। ऐसा जानकर तुम्हें नित्य प्रसन्नतापूर्वक पति की सेवा करनी चाहिये। पति सेवन सदा समस्त अभीष्ट फलों को देनेवाला है। तुम साक्षात् जगदम्बा महेश्वरी हो और तुम्हारे पति साक्षात् भगवान् शिव हैं।

तुम्हारा तो चिन्तन-मात्र करने से स्त्रियाँ पतिव्रता हो जायँगी। यद्यपि तुम्हारे आगे यह सब कहने का कोई प्रयोजन नहीं है, तथापि आज लोकाचार काआश्रय ले मैंने तुम्हें सती-धर्म का उपदेश दिया है। ऐसा कहकरवह ब्राह्मण-पत्नी शिवा देवी को मस्तक झुका चुप हो गयी। इस उपदेश को सुनकर शंकर प्रिया पार्वती देवी को बड़ा हर्ष हुआ। ब्राह्मणी ने देवी पार्वती को पतिव्रत-धर्म की शिक्षा देने के पश्चात् मेना को बुलाकर कहा, अब अपनी पुत्री की यात्रा कराइये- इसे विदा कीजिये। तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर वे प्रेम के वशीभूत हो गयीं। फिर धैर्य धारण करके उन्होंने काली को बुलाया और उसके वियोग के भय से व्याकुल हो वे बेटी को बारंबार गले से लगाकर अत्यन्त उच्चस्वर से रोने लगीं।

फिर पार्वती भी करुणाजनक बात कहती हुई जोर-जोर से रो पड़ीं। मेना और शिवा दोनों ही विरह-शोक से पीड़ित हो मूर्च्छित हो गयीं। पार्वती के रोने से देव पत्नियाँ भी अपनी सुध-बुध खो बैठीं। सारी स्त्रियाँ वहाँ रोने लगीं। वे सब-की-सब अचेत-सी हो गयीं। उस यात्रा के समय परम प्रभु साक्षात् योगीश्वर शिव भी रो पड़े, फिर दूसरा कौन चुप रह सकता था? इसी समय अपने समस्त पुत्रों, मन्त्रियों और उत्तम ब्राह्मणों के साथ हिमालय शीघ्र वहाँ आ पहुँचे और मोहवश अपनी बच्ची को हृदय से लगाकर रोने लगे। ‘बेटी ! तुम मुझे छोड़कर कहाँ चली जा रही हो?’ ऐसा कहकर सारे जगत् को सूना मानते हुए वे बारंबार विलाप करने लगे। तब ज्ञानियों में श्रेष्ठ पुरोहित ने अन्य ब्राह्मणों के सहयोग से कृपापूर्वक अध्यात्म विद्याका उपदेश देते हुए सबको रीति से समझाया।