Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव ने माता पार्वती को देखा और और वो सती की पीड़ा को भूल गए। आगे शिव के विवाह की रस्में हुई। महेश्वर ने ब्राह्मणों द्वारा अग्नि की स्थापना करवायी।

शिव पुराण

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Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव ने माता पार्वती को देखा और और वो सती की पीड़ा को भूल गए। आगे शिव के विवाह की रस्में हुई। महेश्वर ने ब्राह्मणों द्वारा अग्नि की स्थापना करवायी और पार्वती को अपने आगे बिठाकर वहाँ ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के मन्त्रों द्वारा अग्नि में आहुतियाँ दीं। उस समय काली के भाई मैनाक ने लावा की अंजलि दी और काली तथा शिव दोनों ने आहुति देकर लोकाचार-का आश्रय ले प्रसन्नता पूर्वक अग्निदेव की परिक्रमा की। तदनन्तर शिव की आज्ञा से मुनियों सहित ब्रह्मा ने शिवा-शिव-विवाह का शेष कार्य प्रसन्नता पूर्वक पूरा किया। फिर उन दोनों दम्पति के मस्तक का अभिषेक हुआ।

ब्राह्मणोंने उन्हें आदरपूर्वक ध्रुव का दर्शन कराया। तत्पश्चात् हृदयालम्भन का कार्य हुआ। फिर बड़े उत्साह के साथ स्वस्तिवाचन किया गया। इसके पश्चात् ब्राह्मणों की आज्ञा से शिव ने शिवा के सिर में सिन्दूर दान किया। उस समय गिरिराज नन्दिनी उमा की शोभा अद्भुत और अवर्णनीय हो गयी। फिर ब्राह्मणों के आदेश से वे शिव-दम्पति एक आसन पर विराजमान हो भक्तों के चित्त को आनन्द देने वाली उत्तम शोभा पाने लगे।


देवेश्वर शिव देवताओं सहित कैलास की यात्रा के लिये जब उद्यत हुए,उस समय मेना उच्च स्वर से रोने लगीं और उन कृपानिधान से बोलीं। मेना ने कहा- कृपानिधे ! कृपा करके मेरी शिवा का भली भाँति लालन-पालन कीजियेगा। आप आशुतोष हैं। पार्वती के सहस्रों अपराधों को भी क्षमा कीजियेगा। मेरी बच्ची जन्म-जन्म में आपके चरणारविन्दों-की भक्त रही है और रहेगी। उसे सोते और जागते समय भी अपने स्वामी महादेव के सिवा दूसरी किसी वस्तु की सुध नहीं रहती। मृत्युंजय ! आपके प्रति भक्ति-भाव की बातें सुनते ही यह हर्ष के आँसू बहाती हुई पुलकित हो उठती है और आपकी निन्दा सुनकर ऐसा मौन साध लेती है, मानो मर ही गयी हो।

 

ऐसा कहकर मेनका ने अपनी बेटी शिव को सौंप दी और दोनों के सामने ही उच्चस्वर से रोती हुई वह मूर्च्छित हो गयी। तब महादेव जी ने मेना को समझाकर सचेत किया और उनसे विदा ले देवताओं के साथ महान् उत्सवपूर्वक यात्रा की। शैलराज की प्यारी पत्नी मेना ने विधिपूर्वक वैदिक एवं लौकिक कुलाचार का पालन किया और उस समय नाना प्रकार के उत्सव मनाये। फिर उन्होंने नाना प्रकार के रत्नजटित सुन्दर वस्त्रों और बारह आभूषणों द्वारा राजोचित श्रृंगार करके पार्वती को विभूषित किया।