Shiv Purana Part 138: उमा का सुन्दर रूप देखकर सती के दाह का दुःख भूल गये शिव! पार्वती ने किया अम्बिका पूजन

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शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि श्री शिव जी के विवाह की तैयारी होने लगी और मेना एवं बाकी स्त्रियों ने शिव की पूजा की। भगवान् शंकर का वह रूप देखकर समस्त देवता हर्ष से खिल उठे।

शिव पुराण

विस्तार

शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि श्री शिव जी के विवाह की तैयारी होने लगी और मेना एवं बाकी स्त्रियों ने शिव की पूजा की। भगवान् शंकर का वह रूप देखकर समस्त देवता हर्ष से खिल उठे। श्रेष्ठ गन्धर्व उनका यश गाने लगे और अप्सराएँ नृत्य करने लगीं। बाजा बजाने वाले लोग मधुर ध्वनि में अनेक प्रकार की कला दिखाते हुए आदरपूर्वक भाँति-भाँति के बाजे बजा रहे थे। हिमाचल ने भी आनन्दित होकर द्वारोचित मंगलाचार किया। इसके बाद भगवान् शिव अपने गणों और देवताओं के साथ अपने को दिये गये स्थान (जनवासे) में चले गये।

इसी बीच में गिरिराज के अन्तःपुर की स्त्रियाँ दुर्गा को साथ ले कुलदेवी की पूजा के लिये बाहर निकलीं। वहाँ देवताओं ने, जिनकी पलकें कभी नहीं गिरती थीं, प्रसन्नता पूर्वक पार्वतीको देखा।

उनकी अंगकान्ति नील अंजन के समान थी। वे अपने मनोहर अंगों से ही विभूषित थीं। उनका कटाक्ष केवल भगवान् त्रिलोचन पर ही आदरपूर्वक पड़ता था। दूसरे किसी पुरुष की ओर उनके नेत्र नहीं जाते थे। उनका प्रसन्न मुख मन्द मुसकान से सुशोभित था। वे कटाक्ष पूर्ण दृष्टि से देखती थीं और बड़ी मनोहारिणी जान पड़ती थीं। उनके केशों की चोटी बड़ी ही थी। कपोलों पर बनी हुई मनोहर सुन्दर पत्रभंगी उनकी शोभा बढ़ाती थी। ललाट में कस्तूरी की बेंदी के साथ ही सिन्दूर की बिंदी शोभा दे रही थी। वक्ष:स्थल पर श्रेष्ठ रत्नों के सारभूत हार से दिव्य दीप्ति छिटक रही थी। रत्नों के बने हुए केयूर, वलय और कंकण से उनकी भुजाएँ अलंकृत थीं। उत्तम रत्नमय कुण्डलों से उनके मनोहर कपोल जगमगा रहे थे।

उनकी दन्तपंक्ति मणियों तथा रत्नों की प्रभा को छीने लेती थी और मुख की शोभा बढ़ाती थी। मधु से पूरित अधर और ओष्ठ बिम्ब फल के समान लाल थे। दोनों पैरों में रत्नों की आभा से युक्त महावर शोभा देता था। उन्होंने अपने एक हाथ में रत्न जटित दर्पण ले रखा था और उनका दूसरा हाथ क्रीडाकमल से सुशोभित था। उनके अंगों में चन्दन, अगर, कस्तूरी और कुंकुम का अंगराग लगा हुआ था। पैरों में पायजेब बज रहे थे और वे अपने लाल-लाल तलुओं के कारण– बड़ी शोभा पा रही थीं।

समस्त देवता आदि ने जगत् की आदिकारण भूता जगज्जननी– पार्वती देवी को देखकर भक्तिभाव से मस्तक झुका मेना सहित उन्हें प्रणाम किया। त्रिलोचन शिव ने भी बड़ी प्रसन्नता के साथ करनखियों से उन्हें देखा और उनमें सती की आकृति देखकर अपनी विरह-वेदना को त्याग दिया। शिवा पर आँखें गड़ाकर भगवान् शिव उस– समय सब कुछ भूल गये। उनके सारेअंगों में रोमांच हो आया। वे हर्ष का अनुभव करते हुए गौरी की ओर देखने लगे। गौरी उनकी आँखों में समा गयी थीं।

इधर पुरी से बाहर जाकर अम्बिका देवी की पूजा करने के पश्चात् ब्राह्मण पत्नियों के साथ पुनः अपने पिता के रमणीय भवन में लौट आयीं। भगवान् शंकर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा देवताओं के साथ हिमाचल के बताये हुए अपने

नियत स्थान पर प्रसन्नतापूर्वक गये। वहाँ गिरिराज के द्वारा नाना प्रकार की सुन्दर समृद्धि से सम्मानित हुए वे सब लोग सुखपूर्वक ठहर गये और भगवान् शिव की सेवा करने लगे।

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