Shiv Purana Part 137: पार्वती का विवाह शिव से करवाने के लिए कैसे तैयार हुई मेना ? पढ़ें रोचक कहानी

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Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि श्री विष्णु ने पार्वती की माँ मेना को समझाया कि शिव और उनका स्वरुप क्या है। इसके बाद, मेना ने कहा कि अगर शिव सुन्दर रूप धारण कर ले तो वो अपनी बेटी का विवाह उनके साथ कर सकती हैं।

शिव पुराण

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि श्री विष्णु ने पार्वती की माँ मेना को समझाया कि शिव और उनका स्वरुप क्या है। इसके बाद, मेना ने कहा कि अगर शिव सुन्दर रूप धारण कर ले तो वो अपनी बेटी का विवाह उनके साथ कर सकती हैं। ऐसा कहकर दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रत का पालन करने वाली मेना शिव की इच्छा से प्रेरित हो चुप हो गयीं। विष्णु की प्रेरणा से नारद जी ने शिव को प्रसन्न किया और उन्होंने सुन्दर रूप धारण किया। शैलराज की पत्नी मेना आश्चर्यचकित हो गयीं। उन्होंने शिव के उस परमानन्द दायक रूप का दर्शन किया, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी, सर्वांग सुन्दर, विचित्र वस्त्रधारी तथा नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषित था। वह अत्यन्त प्रसन्न, सुन्दर हास्य से सुशोभित, ललित लावण्य से लसित, मनोहर, गौरवर्ण, द्युतिमान् तथा चन्द्रलेखा से अलंकृत था।

 

विष्णु आदि सम्पूर्ण देवता बड़े प्रेम से भगवान् शिव की सेवा कर रहे थे। सूर्य देव ने छत्र लगा रखा था। चन्द्रदेव मस्तक का मुकुट बनकर उनकी शोभा बढ़ा रहे थे। इन सब साधनों से भगवान् शंकर सर्वथा रमणीय जान पड़ते थे। उनका वाहन भी अनेक प्रकार के आभूषणों से विभूषित था। उसकी महाशोभा का वर्णन नहीं हो सकता था। गंगा और यमुना भगवान् शिव को सुन्दर चँवर डुला रही थीं और आठों सिद्धियाँ उनके आगे नाच रही थीं। उस समय में, भगवान् विष्णु तथा इन्द्र आदि देवता अपने-अपने वेश को भली भाँति विभूषित करके पर्वतवासी भगवान् शिव के साथ चल रहे थे।

 

उस समय वहाँ परमात्मा शिव की जैसी शोभा हो रही थी, उसका विशेष रूप से वर्णन करने में कौन समर्थ हो सकता है? उन्हें वैसे विलक्षण रूप में देखकर मेना क्षण भर के लिये चित्रलिखी- सी रह गयीं। फिर बड़ी प्रसन्नता के साथ बोली, महेश्वर ! मेरी पुत्री धन्य है, जिसने बड़ा भारी तप किया और उस तप के प्रभाव से आप मेरे इस घर में पधारे। पहले जो मैंने आप शिव की अक्षम्य निन्दा की है, उसे मेरी शिवा के स्वामी शिव ! आप क्षमा करें और इस समय पूर्णत: प्रसन्न हो जायँ। इस प्रकार बात करके चन्द्रमौलि शिव की स्तुति करती हुई शैलप्रिया मेना ने उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम किया, फिर वे लज्जित हो गयीं। इतनेमें ही बहुत-सी पुरवासिनी स्त्रियाँ भगवान् शिव के दर्शन की लालसा से अनेक प्रकारके काम छोड़कर वहाँ आ पहुँचीं। जो जैसे थीं, वैसे ही अस्त-व्यस्त रूप में दौड़ आयीं।

 

उन स्त्रियों ने चन्दन और अक्षत से शिव का पूजन किया और बड़े आदर से उनके ऊपर खीलों की वर्षा की। वे सब स्त्रियाँ मेना के साथ उत्सुक होकर खड़ी रहीं और मेना तथा गिरिराज के भूरिभाग्य की सराहना करती रहीं। तदनन्तर भगवान् शिव प्रसन्नचित्त हो अपने गणों, समस्त देवताओं तथा अन्य लोगों के साथ कौतूहल पूर्वक गिरिराज हिमवान् के धाम में गये। हिमाचल की श्रेष्ठ पत्नी मेना भी उन स्त्रियों के साथ घर के भीतर गयीं और शम्भु की आरती उतारने के लिये हाथ में दीपकों से सजी हुई थाली लेकर सभी ऋषि पत्नियों तथा अन्य स्त्रियों के साथ आदरपूर्वक द्वार पर आयीं।

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