वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, मंथरा के कड़वे वचनों को सुनने के बाद भी कैकेयी ने उसके ऊपर क्रोध नहीं किया बल्कि उसे समझाने लगी और राम को योग्य बताया।

वाल्मिकी रामायण

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वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, मंथरा के कड़वे वचनों को सुनने के बाद भी कैकेयी ने उसके ऊपर क्रोध नहीं किया बल्कि उसे समझाने लगी और राम को योग्य बताया। वो मंथरा से बोली, अगर श्रीराम को राज्य मिल रहा है तो उसे भरत को मिला हुआ समझ, क्योंकि श्रीरामचन्द्र अपने भाइयों को भी अपने ही समान समझते हैं। कैकेयी की यह बात सुनकर मन्थरा को बड़ा दुःख हुआ। वह लंबी और गरम साँस खींचकर कैकेयी से बोली, तुम मूर्खतावश अनर्थ को ही अर्थ समझ रही हो। तुम्हें अपनी स्थिति का पता नहीं है। जब श्रीरामचन्द्र राजा हो जायँगे, तब उनके बाद उनका जो पुत्र होगा, उसी को राज्य मिलेगा। भरत तो राजपरम्परा से अलग हो जायँगे। तुम्हारा पुत्र राज्य के अधिकार से तो बहुत दूर हटा ही दिया जायगा, वह अनाथ की भाँति समस्त सुखों से भी वञ्चित हो जायगा।

इसलिये मैं तुम्हारे ही हित की बात सुझाने के लिये यहाँ आयी हूँ, परंतु तुम मेरा अभिप्राय तो समझती नहीं ! उलटे सौत का अभ्युदय सुनकर मुझे पारितोषिक देने चली हो। यदि श्रीराम को निष्कण्टक राज्य मिल गया तो वे भरत को अवश्य ही इस देश से बाहर निकाल देंगे अथवा उन्हें परलोक में भी पहँचा सकते हैं। श्रीराम लक्ष्मण का तो किञ्चित् भी अनिष्ट नहीं करेंगे, परंतु भरत का अनिष्ट किये बिना वे रह नहीं सकते, इसमें संशय नहीं है। यदि भरत धर्मानुसार अपने पिता का राज्य प्राप्त कर लेंगे तो तुम्हारा और तुम्हारे पक्ष के अन्य सब लोगों का भी कल्याण होगा। सौतेला भाई होने के कारण जो श्रीराम का सहज शत्रु है, वह सुख भोगने के योग्य तुम्हारा बालक भरत राज्य और धन से वञ्चित हो राज्य पाकर समृद्धिशाली बने हुए श्रीराम के वश में पड़कर कैसे जीवित रहेगा?

जैसे वन में सिंह हाथियों के यूथपति पर आक्रमण करता है और वह भागा फिरता है, उसी प्रकार राजा राम भरत का तिरस्कार करेंगे, अतः उस तिरस्कार से तुम भरत की रक्षा करो। तुमने पहले पति का अत्यन्त प्रेम प्राप्त होने के कारण घमंड में आकर जिनका अनादर किया था, वे ही तुम्हारी सौत श्रीराम माता कौसल्या पुत्र की राज्य प्राप्ति से परम सौभाग्यशालिनी हो उठी हैं; अब वे तुमसे अपने वैर का बदला क्यों नहीं लेंगी। जब श्रीराम अनेक समुद्रों और पर्वतों से युक्त समस्त भूमण्डल का राज्य प्राप्त कर लेंगे, तब तुम अपने पुत्र भरत के साथ ही दीन-हीन होकर अशुभ पराभव का पात्र बन जाओगी। जब श्रीराम इस पृथ्वी पर अधिकार प्राप्त कर लेंगे, तब निश्चय ही तुम्हारे पुत्र भरत नष्टप्राय हो जायँगे। अतः ऐसा कोई उपाय सोचो, जिससे तुम्हारे पुत्र को तो राज्य मिले और शत्रुभूत श्रीराम का वनवास हो जाय।

मन्थरा के ऐसा कहने पर कैकेयी का मुख क्रोध से तमतमा उठा। उसने मंथरा से कहा, मैं श्रीराम को शीघ्र ही यहाँ से वन में भेजूंगी और तुरंत ही युवराज के पदपर भरत का अभिषेक कराऊँगी। इस समय यह तो सोचो कि किस उपाय से अपना अभीष्ट साधन करूँ? भरत को राज्य प्राप्त हो जाय और श्रीराम उसे किसी तरह भी न पा सकें यह काम कैसे बने? देवी कैकेयी के ऐसा कहने पर पाप का मार्ग दिखाने वाली मन्थरा बोली, क्या तुम्हें स्मरण नहीं है? या स्मरण होने पर भी मुझसे छिपा रही हो? जिसकी तुम मुझसे अनेक बार चर्चा करती रहती हो, अपने उसी प्रयोजन को तुम मुझसे सुनना चाहती हो? इसका क्या कारण है?