Valmiki Ramayana Part 88: राम के प्रति घृणास्पद शब्द सुनकर दुखी हुई कैकेयी! मंथरा को लगी समझाने
वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि मंथरा के कड़वे वचन का कैकेयी पर कोई प्रभाव नहीं हुआ उल्टा राम के राजा बनने की ख़ुशी के मारे उन्होंने अपना हार भी मंथरा को दे दिया
विस्तार
वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि मंथरा के कड़वे वचन का कैकेयी पर कोई प्रभाव नहीं हुआ उल्टा राम के राजा बनने की ख़ुशी के मारे उन्होंने अपना हार भी मंथरा को दे दिया लेकिन मन्थरा ने कैकेयी की
निन्दा करके उसके दिये हुए आभूषण को उठाकर फेंक दिया। वो रानी से कहने लगी, तुमने यह बेमौके हर्ष किसलिये प्रकट किया? तुम्हें शोक के स्थान पर प्रसन्नता कैसे हो रही है? अरी ! तुम शोक के समुद्रमें डूबी हुई हो, तो भी तुम्हें अपनी इस विपन्नावस्था का बोध नहीं हो रहा? महान् संकट में पड़ने पर जहाँ तुम्हें शोक होना चाहिये, वहीं हर्ष हो रहा है। तुम्हारी यह अवस्था देखकर मुझे मन-ही-मन बड़ा क्लेश सहन करना पड़ता है, मैं दुःख से व्याकुल हुई जाती हूँ।
सौत का बेटा शत्रु होता है। वह सौतेली माँ के लिये साक्षात् मृत्यु के समान है। भला, उसके अभ्युदय का अवसर आया देख कौन बुद्धिमती स्त्री अपने मन में हर्ष मानेगी? यह राज्य भरत और राम दोनों के लिये साधारण भोग्य वस्तु है, इस पर दोनों का समान अधिकार है, इसलिये श्री राम को भरत से ही भय है। लक्ष्मण सम्पूर्ण हृदय से श्रीरामचन्द्रजी के अनुगत हैं। जैसे लक्ष्मण श्रीराम के अनुगत हैं, उसी तरह शत्रुघ्न भी भरत का अनुसरण करने वाले हैं। उत्पत्ति के क्रम से श्रीराम के बाद भरत का ही पहले राज्य पर अधिकार हो सकता है। लक्ष्मण और शत्रुघ्न तो छोटे हैं; अतः उनके लिये राज्यप्राप्ति की सम्भावना दूर है।
वास्तव में कौसल्या ही सौभाग्यवती हैं, जिनके पुत्र का कल पुष्य नक्षत्र के योग में श्रेष्ठ ब्राह्मणों द्वारा युवराज के महान् पद पर अभिषेक होने जा रहा है। वे राजा की विश्वासपात्र हैं और तुम दासी की भाँति हाथ जोड़कर उनकी सेवा में उपस्थित होओगी। हम लोगों के साथ तुम भी कौसल्या की दासी बनोगी और तुम्हारे पुत्र भरत को भी श्रीरामचन्द्र जी की गुलामी करनी पड़ेगी। श्री रामचन्द्र जी के अन्तःपुर की परम सुन्दरी स्त्रियाँ, सीता देवी और उनकी सखियाँ निश्चय ही बहुत प्रसन्न होंगी और भरत के प्रभुत्व का नाश होने से तुम्हारी बहुएँ शोकमग्न हो जायँगी।
मन्थरा को अत्यन्त अप्रसन्नता के कारण इस प्रकार बहकी-बहकी बातें करती देख देवी कैकेयी ने श्रीराम के गुणों की ही प्रशंसा की। वो मंथरा से बोली, श्रीराम धर्म के ज्ञाता, गुणवान्, जितेन्द्रिय, कृतज्ञ, सत्यवादी और पवित्र होने के साथ ही महाराज के ज्येष्ठ पुत्र हैं; अतः युवराज होने के योग्य वे ही हैं। वे दीर्घजीवी होकर अपने भाइयों और भृत्यों का पिता की भाँति पालन करेंगे। ऐसे अभ्युदय की प्राप्ति के समय, जब कि भविष्य में कल्याण-ही-कल्याण दिखायी दे रहा है, तू इस प्रकार जलती हुई-सी संतप्त क्यों हो रही है? मेरे लिये जैसे भरत आदर के पात्र हैं, वैसे ही बल्कि उनसे भी बढ़कर श्रीराम हैं, क्योंकि वे कौसल्या से भी बढ़कर मेरी बहुत सेवा किया करते हैं।
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