सम्पूर्ण जगन्माताएँ, सारी देव कन्याएँ, गायत्री, सावित्री, लक्ष्मी और अन्य देवांगनाएँ, शंकर जी का विवाह है, यह सोचकर बड़ी प्रसन्नता के साथ उसमें सम्मिलित होने के लिये गयीं।

शिव पुराण

विस्तार

शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव की बारात में जाने के लिए संसार के सभी भूत प्रेत कैलास पर्वत पर आ गए। सम्पूर्ण जगन्माताएँ, सारी देव कन्याएँ, गायत्री, सावित्री, लक्ष्मी और अन्य देवांगनाएँ, शंकर जी का विवाह है, यह सोचकर बड़ी प्रसन्नता के साथ उसमें सम्मिलित होने के लिये गयीं। वेदों, शास्त्रों, सिद्धों और महर्षियों द्वारा जो साक्षात् धर्म का स्वरूप कहा गया है तथा जिसकी अंग कान्ति शुद्ध स्फटिक के समान उज्ज्वल है, वह सर्वांग-सुन्दर वृषभ भगवान् शिव का वाहन है।

धर्मवत्सल महादेव जी उस वृषभ पर आरूढ़ हो सबके साथ यात्रा करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे। देवर्षियों के समुदाय उनकी सेवा में उपस्थित थे। इन सब देवताओं और महर्षियों के एकत्र हुए समुदाय से महेश्वर की बड़ी शोभा हो रही थी। उनका बहुत श्रृंगार किया गया था। वे शिवा का पाणिग्रहण करने के लिये हिमालय के भवन को जा रहे थे।

तदनन्तर भगवान् शिव ने नारद जी को हिमाचल के घर भेजा। वे वहाँ की विलक्षण सजावट देखकर दंग रह गये। विश्वकर्मा ने जो विष्णु, ब्रह्मा आदि समस्त देवताओं तथा नारद आदि ऋषियों की चेतन-सी प्रतीत होने वाली मूर्तियाँ बनायी थीं, उन्हें देखकर देवर्षि नारद चकित हो उठे। तत्पश्चात् हिमाचल ने देवर्षि को बारात बुला लाने के लिये भेजा। साथ ही उस बारात की अगवानी के लिये मैनाक आदि पर्वत भी गये। तदनन्तर विष्णु आदि देवताओं तथा आनन्दित हुए अपने गणों के साथ भगवान् शिव हिमालय नगर के समीप सानन्द आ पहुँचे।

गिरिराज हिमवान् ने जब यह सुना कि सर्वव्यापी शंकर मेरे नगर के निकट आ पहुँचे हैं, तब उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। तदनन्तर उन्होंने बहुत-सा सामान एकत्र करके पर्वतों और ब्राह्मणों को महादेव जी के साथ वार्तालाप करने के लिये भेजा। स्वयं भी बड़ी भक्ति के साथ वे प्राण प्यारे महेश्वर का दर्शन करने के लिये गये। उस समय उनका हृदय अधिक प्रेम के कारण द्रवित हो रहा था और वे प्रसन्नतापूर्वक अपने सौभाग्य की सराहना करते थे। उस समय समस्त देवताओं की सेना को उपस्थित देख हिमवान् को बड़ा विस्मय हुआ और वे अपने को धन्य मानते हुए उनके सामने गये।

देवता और पर्वत एक-दूसरे से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए और अपने- आपको कृतकृत्य मानने लगे। महादेव जी को सामने देखकर हिमालय ने उन्हें प्रणाम किया। साथ ही समस्त पर्वतों और ब्राह्मणोंने भी सदाशिव की वन्दना की। भगवान् शिव के पीछे तथा अगल-बगल में खड़े हुए दीप्तिमान् देवता आदि को भी देखकर गिरिराज ने उन सबके सामने मस्तक झुकाया। तत्पश्चात् शिव की आज्ञा से आगे होकर हिमवान् अपने नगर को गये। उनके साथ महादेव जी, भगवान् विष्णु तथा स्वयम्भू ब्रह्मा भी मुनियों और देवताओं सहित शीघ्रतापूर्वक चलने लगे।