वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ ने अपने मंत्रियों से सलाह करके श्री राम को राजा बनाने का निर्णय ले लिए और उसकी तैयारी भी शुरू कर दी और श्री राम को सभा में बुलवाया गया।

वाल्मिकी रामायण

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वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ ने अपने मंत्रियों से सलाह करके श्री राम को राजा बनाने का निर्णय ले लिए और उसकी तैयारी भी शुरू कर दी और श्री राम को सभा में बुलवाया गया। सुमन्त्र ने श्रेष्ठ रथ से श्रीरामचन्द्रजी को उतारा और जब वे पिता के समीप जाने लगे, तब सुमन्त्र भी उनके पीछे पीछे हाथ जोड़े हुए गये। श्रीराम दोनों हाथ जोड़कर विनीत भाव से पिता के पास गये और अपना नाम सुनाते हुए उन्होंने उनके दोनों चरणों में प्रणाम किया। उस समय राजा ने उन श्रीरामचन्द्रजी को मणिजटित सुवर्ण से भूषित एक परम सुन्दर सिंहासन पर बैठने की आज्ञा दी, जो पहले से उन्हीं के लिये वहाँ उपस्थित किया गया था।

जैसे कश्यप देवराज इन्द्र को पुकारते हैं, उसी प्रकार पुत्रवानों में श्रेष्ठ राजा दशरथ सिंहासन पर बैठे हुए अपने पुत्र श्रीराम को सम्बोधित करके बोले, तुम गुणों में मुझसे भी बढ़कर हो, अतः मेरे परम प्रिय पुत्र हो। तुमने अपने गुणों से इन समस्त प्रजाओं को प्रसन्न कर लिया है, इसलिये कल पुष्य नक्षत्र के योग में युवराज का पद ग्रहण करो। राजा की ये बातें सुनकर श्रीरामचन्द्र जी का प्रिय करने वाले सुहृदों ने तुरंत माता कौसल्या के पास जाकर उन्हें यह शुभ समाचार सुना दिया। नारियों में श्रेष्ठ कौसल्या ने वह प्रिय संवाद सुनाने वाले उन सुहृदों को तरह-तरह के रत्न, सुवर्ण और गौएँ पुरस्कार रूप में दीं।

इसके बाद श्रीरामचन्द्रजी राजा को प्रणाम करके रथ पर बैठे और प्रजाजनों से सम्मानित होते हुए वे अपने शोभाशाली भवन में चले गये। नगर निवासी मनुष्यों ने राजा की बातें सुनकर मन ही-मन यह अनुभव किया कि हमें शीघ्र ही अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति होगी, फिर भी महाराज की आज्ञा लेकर अपने घरों को गये और अत्यन्त हर्ष से भर कर अभीष्ट-सिद्धि के उपलक्ष्य में देवताओं की पूजा करने लगे। राजा ने राज्याभिषेक के लिये व्रतपालन के निमित्त जो आज्ञा दी थी, उसे सीता को बताने के लिये अपने महल के भीतर प्रवेश करके जब श्रीराम ने वहाँ सीता को नहीं देखा, तब वे तत्काल ही वहाँ से निकलकर माता के अन्तःपुर में चले गये।

वहाँ जाकर उन्होंने देखा माता कौसल्या रेशमी वस्त्र पहने मौन हो देवमन्दिर में बैठकर देवता की आराधना में लगी हैं और पुत्र के लिये राजलक्ष्मी की याचना कर रही हैं। श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रिय समाचार सुनकर सुमित्रा और लक्ष्मण वहाँ पहले से ही आ गये थे तथा बाद में सीता वहीं बुला ली गयी थीं। श्रीरामचन्द्रजी जब वहाँ पहुँचे, उस समय भी कौसल्या नेत्र बंद किये ध्यान लगाये बैठी थीं और सुमित्रा, सीता तथा लक्ष्मण उनकी सेवा में खड़े थे। पुष्यनक्षत्र के योग में पुत्र के युवराज पद पर अभिषिक्त होने की बात सुनकर वे उसकी मङ्गल कामना से प्राणायाम के द्वारा परमपुरुष नारायण का ध्यान कर रही थीं।